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रामचरित मानस

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चौपाई :

* कहेउँ परम पुनीत इतिहासा। सुनत श्रवन छूटहिं भव पासा॥

प्रनत कल्पतरु करुना पुंजा। उपजइ प्रीति राम पद कंजा॥1॥


भावार्थ:-मैंने यह परम पवित्र इतिहास कहा, जिसे कानों से सुनते ही भवपाश (संसार के बंधन) छूट जाते हैं और शरणागतों को (उनके इच्छानुसार फल देने वाले) कल्पवृक्ष तथा दया के समूह श्री रामजी के चरणकमलों में प्रेम उत्पन्न होता है॥1॥


*मन क्रम बचन जनित अघ जाई। सुनहिं जे कथा श्रवन मन लाई॥

तीर्थाटन साधन समुदाई। जोग बिराग ग्यान निपुनाई॥2॥


भावार्थ:-जो कान और मन लगाकर इस कथा को सुनते हैं, उनके मन, वचन और कर्म (शरीर) से उत्पन्न सब पाप नष्ट हो जाते हैं। तीर्थ यात्रा आदि बहुत से साधन, योग, वैराग्य और ज्ञान में निपुणता,॥2॥


* नाना कर्म धर्म ब्रत दाना। संजम दम जप तप मख नाना॥

भूत दया द्विज गुर सेवकाई। बिद्या बिनय बिबेक बड़ाई॥3॥


भावार्थ:-अनेकों प्रकार के कर्म, धर्म, व्रत और दान, अनेकों संयम दम, जप, तप और यज्ञ, प्राणियों पर दया, ब्राह्मण और गुरु की सेवा, विद्या, विनय और विवेक की बड़ाई (आदि)-॥3॥


* जहँ लगि साधन बेद बखानी। सब कर फल हरि भगति भवानी॥

सो रघुनाथ भगति श्रुति गाई। राम कृपाँ काहूँ एक पाई॥4॥


भावार्थ:-जहाँ तक वेदों ने साधन बतलाए हैं, हे भवानी! उन सबका फल श्री हरि की भक्ति ही है, किंतु श्रुतियों में गाई हुई वह श्री रघुनाथजी की भक्ति श्री रामजी की कृपा से किसी एक (विरले) ने ही पाई है॥4।


दोहा :

* मुनि दुर्लभ हरि भगति नर पावहिं बिनहिं प्रयास।

जे यह कथा निरंतर सुनहिं मानि बिस्वास॥126॥


भावार्थ:-किंतु जो मनुष्य विश्वास मानकर यह कथा निरंतर सुनते हैं, वे बिना ही परिश्रम उस मुनि दुर्लभ हरि भक्ति को प्राप्त कर लेते हैं॥126॥

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1 Comments

shweta soni

21-Jul-2022 02:03 PM

Bahot sunder 👌

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